Sunday, March 24, 2024

गोऽली मारो भेजे को.........।

 


गोली मारो भेजे को,

भेजा शोर करता है! 

अरे !नहीं नहीं ! गोली मत मारिये भेजे को । भेजे को बीेकानेर ले आईये। होली की मस्ती में भेजे का सारा शोर फुर्रर्र हो जायेगा। इन दिनो बीकानेर के परकोटे के चौको मे युवाओ की जो भीड दिखती है यह भीड नही युवाओ का ज्वार है। इस उठते हुए ज्वार में सारे तनाव और शोर बहते नजर आते है। बिस्सो के चैक में रम्मत से पहले जब माताजी प्रकट होते है तो युवाओ में भक्ति का अदभूत ज्वार देखने को मिलता है। भेजे का सारा तनाव का शोर मस्ती के शोर में बदल जाता है। फिजांओ में तनाव धुंऐ की तरह उडता नजर आता है। वे अपना ही नही दूसरे का तनाव भी फुर्रर कर देते है। 





इस हफ्ते बीकानेर में जहां एक ओर होली की मस्ती थी तो दूसरी ओर बीकानेर थियेटर फेस्टिवल शुरू हुआ । ऐसा लग रहा था कि बीकानेर के बारहगुवाड चौक से शुरू हुई नाटयकला टी.डी आटोडोरियम के मंच तक पहुंच गयी। कला के पारखी लोगो को हुजूम दोनो जगह उमड़ पडा। मै रंगमंच का शौख रखता हूं और बीकानेर थियेटर फेस्टिवल का तो इंतजार रहता ही है। इस बार फेस्टिवल के नाटक रविंद्र रंगमंच पर नही होने से मै देख नहीं पाया। शहर से दूर गंगाशहर में टी डी आटोडोरियम में शाम के नाटक खेले गये । मै दूसरे दिन मुंबई नाटक मंडली की प्रस्तुती देखने गया। ये हिंजड़ो के जीवन और संघर्ष पर आधारित नाटक था। कलाकारो का बेहतरीन अभिनय था। नाटक लंबा होने से दर्शको को बोरियत होने लगी। फिर भी कलाकारो ने अपनी अदाकारी से दर्षको का ध्यान खींचा। बाकि दिनो में मैने बहुत कोशिश की परन्तु समय नहीं निकाल पाया। 


उधर बीकानेर थियेटर फेस्टिवल शुरू हुआ ईधर शहर में होली की मस्ती शुरू हो गयी। पहले दिन नत्थुसरगेट पर फक्कडदाता की रम्मत खेली गयी। रम्मत एक लोक कला तो है ही साथ में यह अच्छी बात है कि दर्शक, कलाकार और वीआईपी सब एक समान माने जाते है। कोई भी मंच तक जा सकता है। कोई भी कलाकारो का साथ गायन में दे सकता है। भीड का रैला का रैला चल रहा था। 



दूसरे दिन बिस्सो के चौक में रम्मत थी। रम्मत से पहले माताजी के प्रकट होने के दृश्य को देखने के लिए हजारो लोग आते है। घरो की छत्ते और चौक का हर कोनो भीडसे ठसाठस भर जाता है। मै अपने दोस्त उमेश के संग गया था। भीड से एक धक्का आता है और हम सीधे मंच तक पहुंच जाते है और एक धक्के के साथ ही वापिस पीछे पहुंच जाते है। भीड मे हमे कई कलाकार दिखाई दिये जो अलग अलग प्रकार के रूप धरे हुए थे। माताजी के प्रकट होने पर भीड पूरी तरह से भक्तिभाव से माताजी को समर्पित हो जाती है। माताजी का आर्षीवाद लेने के लिए होडा होडी मच जाती है। हमने भी माताजी के दर्शन किए और  भीड से निकल कर घर को आये। 



होली के चौथे दिन आचार्या के चौक में अमर सिंह राठौड की रम्मत थी। इस रम्मत से पहले भी हम पहुंच गये। रम्मत के कार्यक्रम रात को 12 बजे बाद शुरू होते है। हम मोहता चौक् पहुंचे वहां डांडिया का कार्यक्रम चल रहा था। बाईक हमारी पहले ही रोक ली थी। डांडिया की कुछ देर मस्ती ली। फिर हमारे कदम आचार्यो के चैक् की ओर चल दिये। जहा माता भवानी के प्रकट होने की तैयारी चल रही थी। ष्यहां धक्का मुक्की बिस्सौ के चौक् से ज्यादा थी। यहां भी घरो की छत्तो पर बेशूमार लोग थे। जय भवानी के प्रकट होने पर युवाओ का जोश सब कुछ भुला देने वाला था। आपके तनाव और भेजे का शोर कहीं रह जाता है।

 


अगले दिन पहले जस्सूसर गेट पर फाग उत्सव पर मुन्ना सरकार और मास्टर नानू अपनी आवाज के जलवे बिखेर रहे थे। मुंबईया के शो की तरह उनकी प्रस्तुत थी। मुन्ना सरकार और मास्टर नानू की जुगलबंदी कमाल की थी। मै भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात बतात हूं....... गीत पर तो उन्होने कमाल कर दिया। युवाओ की भीड उनके स्वरो पर झूम उठी। यहां से निकल की हम पहुंचे नत्थुसर गेट पर जहां पर भांग की कुल्फी, भंग की कचाडी, भुजिये, सब कुछ भांग का। बहुत बडा बाजार और उस बाजार में उतनी ही बडी भीड। हम भीड में आगे चलते गये। एक गाडे पर ग्रामीण वेषभूषा धरे युवा बैठे थे। हमने युवाओ के साथ गाढे पर बैठकर एक तस्वीर ली। इसके आगे एक मंडली चंग की थाप पर फिल्मी गाने गाकर झूम रही थी। थोडो और आगे चले तो हमारे उपर पानी एक गुब्बारा आकर गिरा। दरअसल आगे बच्चे लोगो पर पानी के गुब्बारे फेंक रहे थे। आगे सडक पर एक भूतनी बैठी हुई थी। एक बार तो हम डर गये। फिर भूतनी के साथ एक तस्वीर उतारी। आगे तो भाई बारहगुवाड चौक् था। बीकानेर होली की राजधानी। व्यासो की गेवर से अटा हुआ था। युवाओ के शोर में कुछ सुनाई नही दे रहा था। यहां भेजे का शोर फुर्रर हो जाता है। धक्का मुक्की से आगे निकल की कोशिश की परन्तु नहीं निकल पाये। दूसरे रास्ते से निकले। सदाफते पर लगे मंच पर फिल्मी गाने गाये जा रहे थे। मौका देखकर हमने भी अपना जैसा था वैसा गला साफ किया। भीड से निकल कर वापिस नत्थुसर गेट आयें। यहां पर हमने भी जोशी आईसक्रीम की आईसक्रीम का स्वाद ले ही लिया। आईसक्रीम का स्वाद लेते हुए हम पुष्करणा स्टेडियम तक पहुंचे तो होली पीछे छुट गयी। भेजा फिर शोर करने लगा। अब लग घर जाकर सो जाना चाहिए। तडके 3.00 बज रहे थे। 


Monday, February 26, 2024

क्रिकेट की एक स्‍कूल है आर. अश्विन





इग्‍लैण्‍ड जिस बैजबॉल की रणनीति के साथ भारत आया था उस बैजबॉल पर आर अश्विन की बॉल भारी पडी । अश्विन ने दूसरे टेस्‍ट में अपना बहुप्रतिक्षित ५००वां विकेट भी ले लिया। अश्‍विन मुरलीधरन के बाद दूसरे सबसे तेज ५०० टेस्‍ट विकेट लेने वाले खिलाडी है। ५०० वां विकेट लेने केवल एक विकेट भर लेना नही है बल्कि  सालो तक अंतराष्‍ट्रीय क्रिकेट में अपने आपको बनाये रखना कोई आसान काम नही है। क्रिकेट इस सुनहरे पल को पाने के लिए उसने कई अनमोल क्षणो को अपने क्रिकेट कैरियर में जीया है। ५००वां टेस्‍ट विकेट किसी भी गेंदबाज को क्रिकेट की एक स्‍कूल बनाता है जो कई युवाओ के लिए मिसाल बनता है।

क्रिकेट के इस महान गेंदबाज की उपलब्धि पर क्रिकेट लीजेण्‍ड सुनील गावस्‍कर ने लिखा कि यह एक महान पल है। ऐसा बिरले खिलाडी ही कर सकते है और अश्विन उन चुनींदा गेंदबाजो में शामिल है जिन्‍होने यह कारनामा किया है। सबसे बडी बात है कि उसने स्पिन गेंदबाज होकर यह मुकाम हासिल किया है। यह मुकाम हासिल करके उसने दुनिया में भारत के नाम को और उंचा किया है परन्‍तु उसे ५०० वां टेस्‍ट विकेट हासिल करने के बाद वो सम्‍मान नहीं मिल पाया जिसका वो हकदार है। अश्विन भारतीय टीम के कप्‍तान बनने के हकदार थे परन्‍तु वो यह सम्‍मान हासिल नही कर पाये। गावस्‍कार ने यह भी कहा जिस समय भारत की एक से ज्‍यादा टीमे खेल रही थी उस समय अश्विन को कप्‍तान बनने का सम्‍मान दिया जा सकता था। इससे पहले कपिल देव ने ४०० विकेट लेने का मुकाम हासिल किया था उन्‍हे कप्‍तान बनने का सौभाग्‍य मिला था।  अनिल कुंबले भी भारत की कमान संभाल चुके है परन्‍तु आर अश्विन यह सम्‍मान हासिल नही कर पाये। सुनील गावस्‍कर ने कहा कि अश्विन की इस उपलब्धि पर हमें नाच कूद कर खुशी मनानी चाहिए।

अश्‍विन ने भी इस मुकाम को हासिल करने के लिए सावधानी से कदम रखे। उसकी पत्नि लिखती है कि हमने इस पल का बहुत लंबा इंतजार किया। इससे पहले हमने मिठाईयां और आतिशबाजी मंगाकर रखी थी परन्‍तु अश्विन ४९९ विकेट पर ही रूक गये। इस कारण मिठाईयां वैसे ही बांटनी पडी। आर अश्विन ने भी एक अखबार में लिखा कि उसे अपने कैरियर में बहुत उतार चढाव देखे है। कोरोना  से पहले वह अपने कैरियर के सबसे बुरे दौर से गुजरा था। उस समय वो अपने प्रदर्शन को दोहरा नही पा रहा था। उसे टीम से बाहर कर दिया गया था। उसे वापसी की कोई राह नही मिल रही थी। ऐसा लग रहा था कि उसका कैरियर खत्‍म हो जायेगा। आईपीलएल में उसका प्रदर्शन गिर रहा था। यह उसके कैरियर का सबसे बुरा दौर था। उसने लिखा किे वो खेल से बहुत प्‍यार करता था परन्‍तु वो खेल को खोना नही च‍ाहता था। इस बुरे दौर में वो लगातार चोटिल भी हो रहे थे। वो एक अंधरे गुफा में था। उसने खेल को नये नजरिये से देखा। उसने दूसरे मैचो के वीडियो देखे और वीडियो देखकर अपने आप में सुधार किया और २०२० के बाद फिर मैदान में वापसी की। भारतीय कप्‍तान रोहित शर्मा कहते है कि आप आर अश्‍विन को हर मैच में अलग प्रकार से गेंद फेकते देखते है। आपको हर मैच में नया अश्विन मिलता है। यही अश्‍विन की विशेषता है कि वो हर बार नये तरीके से गेंद फेकता है। अपने इसी प्रयोग के कारण उसने कैरम बॉल का ईजाद किया। कैरम बॉल से कई बललेबाज  गच्‍चा खा जाते है।  

 

आर अश्विन ने ५०० विकेट का मुकाम हासिल करने के साथ ही ईग्‍लैण्‍ड के विरूद्ध १००० से अधिक रन और १०० विकेट हासिल किये। वो यह मुकाम हासिल करने वाला अकेला भारतीय खिलाडी है और ५०० विकेट हासिल करने वाला  मात्र दूसरा भारतीय खिलाडी है। इतनी बडी उपलब्धि हासिल करने के बाद गावस्‍कर की बात में दम लगता है कि ऐसे खिलाडी को कप्‍तानी का सम्‍मान भी मिलना चाहिए। हांलाकि दुनिया में इतनी बडी उपलब्धि हासिल करने वाले खिलाडियो को कप्‍तानी का सम्‍मान बहुत कम हासिल हुआ है। मुरलीधर और शेन वार्ने जो दुनिया के सबसे महानतम गेंदबाज है जो ८०० और ७००विकेट ले चुके है परन्‍तु कभी भी अपने देश की टीम के कप्‍तान नही बन पाये परन्‍तु इस आधार पर अश्विन के दावे को खारिज नहीं किया जा सकता है। आर अश्विन भी भारतीय टीम का कप्‍तान बनने का सम्‍मान हासिल करने के हकदार थे। यह अलग बात है कि उन्‍होने टीम में बने रहने के लिए भी संघर्ष किया। बदलते दौर में भी अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए अश्विन की प्रशंषा होनी चाहिए और जिस प्रकार वो हर बार अपनी गेंदबाजी में प्रयोग करते है वह युवाओ के लिए सीखने की जरूरत है। भारत को इस महान गेंदबाज पर गर्व करना चाहिए जिसने देश को दूसरी बार ५०० का आंकडा छुने का गर्व दिलाया है।

सीताराम गेट के सामने, बीकानेर ९४१३७६९०५३

Tuesday, February 20, 2024

ये मुलाकात तो इक बहाना हैै.............




इन दिनो हवाऐं चलने लगी है। फागण नही आया है परन्‍तु यह फागण की आहट है। छत्‍त पर बने कमरो के आगे मिटटी जमा होने लगी है। हवाओ के साथ मिटटी भी उडकर आने लगती है। सर्दीया अबकी बार कब आयी और कब गयी पता ही नहीं चला। सर्दियो में छुटटी वाले दिन छत्‍त पर बैठ कर एक दो किताबे पढ लेता हुं। इस बार रक्सिन बाण्‍ड की आत्‍मकथा की ई बुक मंगवायी थी परन्‍तु पढ नही पाया। उसकी रीडिंग जारी है। इन सर्दियो मे आफिस में इतना काम रहा कि किताबे पढने के लिए समय ही नहीं निकाल पाया। शनिवार हो या रविवार मेरे को आफिस जाना ही पडता था। धूप कमरे की देहरी पार कर मेरे पलंग तक आ जाती थी। ऐसा लगता था कि वो मुझे ढुंढ रही है। एक दो बार धूप में बैठने का मौका मिला तो आफिस से कॉल आने के कारण जाना पडा। कमरे की देहरी पार कर आयी हुयी धूप को देखकर लगता था कि वो कह रही है –

ये मुलाकात तो ईक बहाना है,

यह सिलसिला पूराना है।

हमारे जिला कलेक्‍टर श्री भगवती प्रसाद कलाल सर का ट्रान्‍सफर हो गया तो आज मै समय निकाल कर यह ब्‍लॉग लिख रहा हूं। कलाल सर का मेरे लिए यह मैराथन कार्यकाल था। कलाल सर के कार्यकाल में मैने काम के प्रति नये द्रष्टिकोण को देखा या यूं कहे काम के ब्रह्म को जाना। कलाल सर के लिए सरकार द्वारा निर्धारित मानदण्‍ड काफी पीछे छुट जाते थे। वे काम को मानदण्‍ड की द्रष्टि से नही बल्कि उसके निस्‍तारण की दृष्टि से देखते थे। इसके लिए चाहे कितना ही समय देना पडे वो देते थे। सुबह साढे नौ से रात को साढे दस ग्‍यारह बजे तक लगातार वे आफिस चलाते थे। लक्ष्‍य एक ही था काम का निस्‍तारण और जनता को राहत। मै भी उनके निर्देशो की पालना में दिन रात लगता रहता था। सुबह शाम, सोमवार मंगलवार, शनिवार रविवार या होली डे किसी चीज का ख्‍याल नही रहता था। इसके साथ होने वाले तनाव को वो सहज ढंग से रिलिज कर देते थे। एक बार कोर्ट में एक महिला ने भरे कोर्ट में मेरी ओर ईशारा कर कह दिया कि मेरी फाईल का निस्‍तारण नही हुआ तो मै आपके घर चली आउंगी। ऐसी तनावपूर्ण स्थिति में भी उन्‍होने बिना किसी दबाव में आये न्‍याय किया।

मेरे ख्‍याल से  कलाल सर काम करने की एक किताब है जिसको पढकर काफी कुछ सीखा जा सकता है जो आपके जीवन में भी बहुत काम आ सकती है। कलाल सर के हार्ड बवर्क के दौरान भी मैने समय निकाल कर उनके कार्यकाल में तीन किताबे लिख दी । दो रिलिज हो चुकी है और एक नयी किताब यह ब्‍लाग आपके पास आने तक आ जायेगी। मेरी लेखन की प्रतिभा को पचानते हुए उन्‍होने मुझे गणतंत्र दिवस पर जिला स्‍तर पर सम्‍मानित किया। उन्‍होने मुझे लिखने के लिए हमेंशा प्रोत्‍साहित किया। कलाल सर के साथ अनमोल समय व्‍यतीत किया या यूं कहे क्‍वालिटी टाईम स्‍पेंड किया। अब नम्रता जी वृष्णि के साथ काम करना है। देखते है –


इन दिनो शहर मे ओलम्पिक सावे की धूम  है। मेरे ननिहाल में भी शादी थी तो तीन दिन शादी में व्‍यस्‍तता रही है। शादी में पूरा आनंद लिया। ऐसा लगता है कि इस समय जमकर आनंद ले लूं या यूं कहे आनंद को लूट लूं। जो संकोचवश नही कर पाया वो सब कर लूं। शादी में काफी लोगो से मिलना हुआ। कुछ और शादिया भी अटैण्‍ड की और उसमें भी कई पूराने दोस्‍त मिले। रमक झमक के प्रहलाद ओझा का निमंत्रण आया हुआ था परन्‍तु जा नही पाया। इस सावे में मित्रो के परिवारजनो की शादीयो में शामिल हुआ। हर शादी में उत्‍सव की तरह आनंद लिया।


अब मेरी किताब की बात। इस साल मेरी एक ओर बच्‍चो की किताब आ रही है। यह राजस्‍थानी भाषा में है। मुझे बच्‍चो के लिए लिखने में मजा आता है और बच्‍चे पढकर खुश भी होते है। काफी बच्‍चे मेरी किताबो के कारण मुझे प्‍यार करते है। मुझे अच्‍छा लगता है। राजस्‍थानी भाषा की किताब है। बच्‍चो के लिए सरल सहज भाषा की किताब। एक ऐसी किताब जिससे बच्‍चे अपने मन की दुनिया पाते है। 


अपने तरह की अनोखी किताब है। जल्‍द ही आपके सामने आयेगी – खेलरां रो खेल। यही टाईटल है मेरी नयी किताब का। आज बस इतना ही । फिर कभी नयी बात। आपके साथ।


Wednesday, January 31, 2024

खेलो इंडिया से कितना खेला इंडिया

 


देश में सालो तक खेलो के राष्‍ट्रीय स्‍तर के बडे आयोजनो में राष्‍ट्रीय खेल सबसे उपर रहे है। राष्‍ट्रीय खेल के आयोजन में अंतराल आता रहा है परन्‍तु इस समय देश में खेलो इंडिया की धूम है। भारत सरकार का यह कार्यक्रम युवाओ में खासा लोकप्रिय हो रहा है। इसी के तहत तमिलनाडु की मेजबानी में खेलो इंडिया यूथ गेम्‍स का छठा संस्‍करण आयोजित किया गया जिसमे देश भर के ५६०० से भी ज्‍यादा खिलाडियो ने हिस्‍सा लिया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि खेलो इंडिया देश में खेलो के प्रति युवाओ में विश्‍वास जगाने में कितना बडा काम कर रहा है। युवा इसे अपनी उम्‍मीदो से जोडकर देख रहे है। खेलो इंडिया ने युवाओ को न केवल अवसर प्रदान किये है बल्कि मिलने वाली सुविधाओ में भी ईजाफा किया है।

तमिलनाडु में खेला इंडिया यूथ गेम्‍स का छठा संस्‍करण आयोजित किया गया। इन खेलो मे महाराष्‍ट्र, हरियाणा और तमिलनाडु के एथलीट छाये रहे । खेलो इंडिया यूथ गेम्‍स २०२३ में महाराष्‍ट्र चैम्पियन बना था। इस बार केआईवाईजी २०२४ में कुल २६ खेलो में ९३३ पदक दांव पर थे जिसमें २७८ स्‍वर्ण पदक, २७८ रजत और ३७७ कास्‍यं पदक शामिल है। स्‍क्‍वेश को पहली बार केआईवाईजी में शामिल किया गया। इसमें ३६ राज्‍यो और केन्‍द्र शासित प्रदेशो की टीमें भाग लेती है। इसमें सबसे बडा दल मेजबान तमिलनाडु का रहा जिसमें ५५९ एथलीट शामिल थे जबकि तीन बार के चैम्पियन महाराष्‍ट्र के दल में ४१५ और दो बार के चैम्पियन हरियाणा के दल में ४९१ एथलीट शामिल थे। हरियाणा छोटा राज्‍य होने के बावजूद दो बार चैम्पियन है जो यह बताता है कि इस राज्‍य में खेलो का इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर कितना मजबूत है। केआईवाईजी टीम चैम्पियशिप प्रारूप में खेला जाता है जिसमें एथलीटो द्वारा जीते गये पदक उनसे सम्‍बन्धित राज्‍य या केन्‍द्र शासित प्रदेश की समग्र पदक तालिका में जोडे जाते है और जो टीम सबसे ज्‍यादा पदक जीतती है, उसे प्रतियोगिता का चैम्पियन घोषित किया जाता है।

खेलो इंडिया वर्ष २०१७-१८ में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने एथलीटो को जमीनी स्‍तर पर सुविधाऐ और अवसर उपलब्‍ध करान के उद्धेश्‍य से शुरू किया गया। खेलो इंडिया भारत सरकार की युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय की केन्‍द्रीय प्रवर्तित योजना है। इसके अन्‍तर्गत खेलो इंडिया यूथ गेम्‍स, खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्‍स और खेलो इंडिया विंटर गेम्‍स आयोजित किये जाते है। इससे जुडे खिलाडियो को खेला इंडिया एथलीट के रूप में पहचान मिली है। इससे निकले ३००० से ज्‍यादा एथलीट भारतीय खेल प्राधिकरण के विभिन्‍न केन्‍द्रो पर प्रशिक्षण प्राप्‍त कर रहे है। इस प्रशिक्षण  में उपकरण , आहार और शिक्षा हेतु सहायता के अतिरिक्‍त १०,००० रूपये भत्‍ता दिया जाता है। खेलो इंडिया भारत में खेलो के विकास के लिए महत्‍ती भूमिका निभाता हुआ दिख रहा है। एशियाई खेलो में भारत की पदक तालिका तीन अंको में पहुंचाने में कहीं न कहीं खेलो इंडिया का योगदान है। भारतीय एथलीटो ने एशियाई खेलो में जिस प्रकार का खेल और जज्‍बा दिखाया वो खेलो इंडिया के कारण ही संभव हो सका है। भारतीय एथलीटो को दिया गया प्रशिक्षण मैदान में उनके प्रदर्शन से दिख रहा है। राष्‍ट्रकुल खेलो और ओलम्पिक  में भी भारतीय एथलीटो का प्रदर्शन पूर्व के प्रदर्शनो से काफी बेहतर रहा है। इसके लिए भारतीस एथलीटो ने मिली सुविधाओ का खूब लाभ उठाया जो उनकी सफलता में दिखाई दिया।

खेलो इंडिया योजना युवाओ के बीच लोकप्रिय होती दिख रही है। युवाओ को निश्चित रूप से इससे अवसर प्राप्‍त हुए है। खेलो इंडिया यूथ गेम्‍स और खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्‍स के अलग अलग आयोजन होने से युवाओ के लिए अवसर बढे है। खेलो का इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर पहले से बेहतर हुआ है परन्‍तु अभी भी इस क्षेत्र में काम की जरूरत है। ठेठ ग्रामीण स्‍तर तक खेलो के इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर को बेहतर बनाने की आवश्‍यकता है। कई गांवो में खेल प्रतिभाऐं है परन्‍तु इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर के अभाव में ये प्रतिभाऐ उभरने से पहले ही खत्‍म हो जाती है। सोशल मिडिया के जरिये कई बार गांव की लडकियो को अपने गांव मे खेलो में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन में करते हुए देखा जा सकता है। किसी भी बडे प्रतिभा खोज तलाश कार्यक्रम में प्रतिभाऐं गांव में ही मिलती है। तीरंदाज लिम्‍बाराम ठेठ गांव की ही प्रतिभा थी। देश की कई यूनिवर्सिटीज में भी खेल सुविधाओ और साधनो का अभाव है इस कारण प्रतिभाशाली खिलाडी आगे बढने का सपना वहीं खत्‍म कर देते है। खेलो इंडिया के माध्‍यम से अंतिम छोर तक खेल सुविधाओ का विस्‍तार करने की आवश्‍यकता है।

खेलो इंडिया योजना के तहत स्‍थानीय खेलो को भी महत्‍व दिया जा रहा है जिसमें गतका, कलारीपयटु और मलखम्‍ब शामिल है। खेलो इंडिया से निश्चित रूप से इंडिया खेला है और काम्‍याबी के सा खेला है। अभी खेलो इंडिया को पांच से सात साल ही हुए है। अभी जो परिणाम मिले हुए उसे शुरूआती माने जा सकते है परन्‍तु अगले पांच वर्षो में बडे परिणामो की दरकार रहेगी। हाल के परिणामो से माना जा सकता है कि खेलो इंडिया अपने उद्धेश्‍यो में सफल हो रहा है। खेलो इंडिया यूथ गेम्‍स की लोकप्रियता जिस प्रकार से बढी है उससे युवाओ खेलो की तरफ आकर्षित हुए है। तमिलनाडु में इन खेलो का जारेदार आयोजन हुआ और सबसे बडी बात इसमें लगभग सभी राज्‍यो और केन्‍द्र शासित प्रदेशो की टीमो ने भाग लिया। 

खेलो इंडिया की सफलता और बडी हो जायेगी तब अंतिम छोर तक खेल सुविधाऐं पहुंच जायेगी। फिलहाल खेलो इंडिया यूथ गेम्‍स अपने छठे संस्‍करण में ही सफल है परन्‍तु यह भी सच है कि पहले पांच प्रदेशो की टीमो के स्‍वर्ण पदको की संख्‍या दहाई तक पहुंच सकी है। इस पदक तालिका से पता लगाया जा सकता है कि खेलो में कहां पर और अधिक ध्‍यान देने की जरूरत है। खिलाडियो का जोश और खूमार खेलो इंडिया के ध्‍वज वाहक है।

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सीताराम गेट के सामने, बीकानेर ९४१३७६९०५३

Wednesday, January 3, 2024

नये अवसरो का साल है २०२४


 


नया साल हमेंशा नयी उम्‍मीदें लेकर आता है। हर क्षेत्र में नये साल में लोग नयी उर्जा के साथ काम में लगते है। खेलो में तो हर एक नया दिन नयी उर्जा के साथ आता है। इस बार खेलो के लिए साल २०२४ पिछले साल की गल्तियो को सुधारने का अवसर लेकर आया है। जो मौके हम २०२३ में चूक गये थे उन मौको को सुधारने का अवसर लेकर आया है नया साल। पिछले साल भारत को बहुत सारे खेलो में पूरी दुनिया में छा जाने का अवसर था। भारत के पास इन खेलो में विश्‍व चैम्पियन बनने का अवसर था। भारत इन खेलो में दुनिया की सबसे बडी ट्रॉफी अपने नाम कर सकता था परन्‍तु हमारे खिलाडी अंतिम अवसर पर चूक गये थे। भारतीय उस समय अपने लक्ष्‍य से चूक गये जब तीर निशाने पर लगने वाला था। भारतीय अपने देशवासियो की उम्‍मीदो को संभाल नहीं पाये और देश की उम्‍मीदे धराशायी कर दी। अब नया साल उन चूके गये अवसरो को वापिस लेकर आया है। ऐसा बहुत कम होता है कि एक साल चूक जाने पर अगले ही साल आपको वापिस   अवसर मिलता है। साल २०२४ उम्‍मीदो को साल है। साल २०२४ हारी हुई बाजी जीतने का साल है।

बात करे क्रिकेट की तो पिछले साल हमने बहुत सारे मौके गंवाये है। पिछले साल वनडे विश्‍वकप में आस्‍ट्रेलिया के हाथो फाईनल की हार कई साल तक सालती रहेगी। वनडे विश्‍वकप भारत में हुआ था लिहाजा भारत के लिए उम्‍मीदे भी ज्‍यादा थी और अवसर भी। परन्‍तु भारतीय पूरे टुर्नामेंट में सिकन्‍दर की तरह खेलने वाले अंतिम क्षणो में उम्‍मीदे और अवसर दोनो गंवा बैठे। इससे पहले विश्‍व टेस्‍ट चैम्पियपनशिप में भारत लगातार दूयरी बार फाईनल में पहुंचा था और यहां भी भारत से उम्‍मीदे थी क्‍योंकि टेस्‍ट क्रिकेट में भारत शीर्ष पर था। लगभग हर टीम को हरा चुका था। यहां भी भारतीय अंतिम क्षणो में चूक गये और फाईनल में आस्‍ट्रेलिया से हार गये। टेस्‍ट चैम्पियपनशिप के फाईनल में हारना क्रिकेट की सबसे बडी हार थी। साल २०२३ में क्रिकेट में भारत के लिए दुनिया का सिरमौर बनने के दो अवसर थे और दोनो ही अवसर भारत ने आखिरी दौर में गंवा दिये। नया साल भारत के लिए अवसर वापिस लाया है। साल २०२४ में जून में अमेंरीका और वेस्‍टंडीज में टी २० विश्‍वकप होगा। भारत के लिए मौका है कि भारत इसे जीत कर पिछले साल गंवाये अवसरो को वापिस सफलता में बदल दे। टी २० विश्‍वकप से पहले भारत को बहुत सारे टी २० और आईपीएल खेलने का अवसर मिलेगा जो टी २० विश्‍वकप में भारत के लिए बुस्‍टर का काम करेगा। इसके अलावा विश्‍व टेस्‍ट चैम्पियनशिप का नया सीजन भी २०२४ मे शूरू होगा और भारत को साल के शुरू में ही ईग्‍लैण्‍ड के साथ ५ मैचो की सीरीज भी खेलनी है। भारत विश्‍व टेस्‍ट चै‍म्पियनशिप का शानदार आगाज कर फाईनल में स्‍थान बनाने के लिए शुरूआत में ही शीर्ष पर पहुंच सकता है। इस प्रकार क्रिकेट में भारत के लिए साल २०२३ में गंवाये अवसरो को वापिस भुनाने के मौके है। भारत के पास साल २०२४ में भी विश्‍व चैम्पियन बनने के मौके है।

बैडमिंटन में साल २०२३ में भारत को अवसर तो मिले परन्‍तु क्रिकेट की तरह अंतिम छोर तक नहीं पहुंच सके। साल २०२२ में गंवाये गये मौको को वो २०२३ में भुना नही सके परन्‍तु पुरूष बैडमिंटन में भारत की चुन्‍नौत्ति युवा शटलरो में मजबूत की। भारतीयो ने टुर्नामेट भी जीते है। साल २०२२ में भारत के लक्ष्‍य सेन आल ईग्‍लैण्‍ड बैडमिंटन में फाईनल तक पहुंचे थे परन्‍तु फाईनल जीत कर पूवर् भारतीयो की सफलता को दोहरा नही सके थे। २०२३ में लक्ष्‍य सेन और किदाम्‍बी श्रीकांत ने अच्‍छा प्रदर्शन किया। लक्ष्‍य सेन साल २०२२ के प्रदर्शन को २०२३ में दोहरा नही सके थे। क्रिकेट की तरह बैडमिंटन में भी खिलाडियो के पास २०२४ में पिछले अवसरो को वापिस भुनाने का अवसर है। इस साल आल ईग्‍लैण्‍ड बैडमिंटन चैम्पियनशिप में भारतीयो के पास फाईनल में पहुचने और जीतने के अवसर है। साल २०२२ में गंवाया अवसर अब वापिस मिल रहा है और इसे भुनाकर एक बार फिर बरसो बाद भारतीय बैडमिंटन को शीर्ष पर पहुंचा सकते है। ऐसा इसलिए है कि इस समय भारतीय शटलर पूरी तरह से फॉर्म में है और इसे जीतने की क्षमता भी रखते है। इसलिए भारतीय शटरलर से उम्‍मीदे की जा रही है।

साल २०२३ मे शतरंज में भारत के लिए चमत्‍क्रत होने का अवसर आया था ज‍ब भारत के प्रागनंदा विश्‍व चैम्पियन बनने के करीब थे परन्‍तु अंतिम क्षणो में भारत के युवा प्रागनंदा अनुभव मैग्‍नस कार्लसन से हार गये थे। इस विश्‍व चैम्पियनशिप के शुरू में तो भारतीयो का ध्‍यान इस ओर नहीं गया था जब प्रागनंदा ने चाले चलनी शुरू की तो इसकी धमक पूरी दुनिया में सुनायी देने लगी और फाईनल तक आते आते पूरा देश विश्‍व चैम्पियन बनने की दुआ करने लगा परन्‍तु युवा ग्राण्‍ड मास्‍टर कराडो उम्‍मीदो का बोझ सहन नहीं कर पाये और चैम्पियन बनने से चूक गये। परन्‍तु साल २०२४ में प्रागनंदा के पास एक और अवसर है। अप्रेल में फिर विश्‍व शतरंज चैम्पियनशिप हो रही है जिसमें प्रागनंदा साल २०२३ में गंवाये अवसरो को वापिस भुना सकता है। भारत के पास वैसे तो कई शातिर है परन्‍तु युवा ग्राण्‍ड मास्‍टर के पास अलग तरह की चाले है। उनकी इन चालो को देखकर दुनिया भर के विशेषज्ञ उन्‍हे भविष्‍य का चैम्पियन मानते है। साल २०२४ में उनके पास अवसर है कि वो दुनिया के सिरमौर शातिर बन सकते है। भोले भाले प्रागनंदा से पूरी भारत को नये साल में उम्मीदे है।

क्रिकेट, बैडमिंटन और शतरंज में ही नही दूसरे खेलो में भी भारत को नये साल में नये अवसर है। टेनिस में भारत को पाकिस्‍तान के साथ डेविस कप खेलना है। भारत डेविस कप में विश्‍वग्रुप में पहुंचने से काफी दूर हो गया है। भारत को इस साल पाकिस्‍तान में डेविस कप खेलने की अनुमति मिलती है तो भारत यहां जीत हासिल कर विश्‍वग्रुप के और करीब जा सकता है। एथलेटिक्‍स में नीरज चौपडा ने पिछले साल स्‍वर्णिम प्रदर्शन किया और नये साल में भी उनके पास अपना प्रदर्शन जारी रखने का अवसर है। पूरे भारत के लिए इस साल होने वाले ओलम्पिक्‍स में भारत को कई ज्‍यादा पदको की उम्‍मीदे है। भारत को इस बार पदको का आंकडा ऐतिहासिक रूप से बढने की उम्‍मीद है। सभी खेलो में २०२३ में चुके गये अवसरो के बाद साल २०२४ में ओलम्पिक के रूप में बहुत सारे अवसर मिल रहे है। भारतीय इन अवसरो केा जरूर भुनायेंगे ऐसी उम्‍मीद है।

साल २०२३ में अवसर कम थे और जो भी अवसर मिले उनमें भारतीयो ने शानदार प्रदर्शन किया परन्‍तु कुछ खेलो में अंतिम समय पर चूक गये थे। इस साल भारत के पास ओलम्पिक्‍स के रूप में बहुत सारे अवसर है। भारत २०२४ में खेलो में नयी ईबारत लिख सकता है। इसलिए भारत नये साल का स्‍वागत नयी उम्‍मीदो आैर उर्जा के साथ कर सकता है।

सीताराम गेट के सामने, बीकानेर ९४१३७६९०५३

Monday, December 25, 2023

इस साल की सिमटी हुई ये घड़ियां


 

इस दिसम्‍बर में जाडे इतने ठिठुराने वाले नहीं है जितने कि पिछले सालो में हुआ करते थे। पांच साल पहले दिसम्‍बर में इतनी ठंड थी कि भोर में बाहर निकलने पर पूरा शरीर ढक कर निकलते थे। केवल और केवल हमारी आंखे ही बिना ढके रहती थी। आंखो पर भी चश्‍मा लगा लेते या हेलमेट के कांच से ढक लेते थे। इन जाडो में अभी तक ऐसी ठंड का अहसास नही हुआ है। आज सुबह अपने कमरे से निकला तो कमरे के बाहर पीली चमकती हुयी धूप बिछी हुई थी। दीवार पर बने घोसेले से कबूतर के बच्‍चे निकल कर धूप में आ गये थे। वे अपने पंख फैला कर पूरे बदन को धूप में सेक रहे थे। वे उड नही पा रहे थे। अभी उडने में थोडा समय है। साल का भी ऐसा ही है। पहले लगता है कि धीरे बहुत जा रहा है फिर एकदम से उड जाता है। साल २०२३ ऐसा ही था। अभी तो हम २०२३ लिखना सीखे थे कि वो हमारे हाथो से फिसल गया। लेकिन फिसलते हुए भी बहुत सारी मीठी यादे दे गया। इस साल आप लोगो कार भरपूर प्‍यार और स्‍नेह मिला। मेरे काम को आपने सराहा। इस साल वो भी मिला जो अब तक अधुरा था। वो पूरा नही मिला है। मन यही कहता है कि

अजीब है दिल के दर्द

यारो न हो तो  मुश्किल है जीना इसका

जो हो तो हर दर्द एक हीरा एक गम नगीना इसका।

इस साल के शुरू मे ही मेरी किताब मोळियो आयी। राजस्‍थानी भाषा की यह किताब आलोचको द्वारा एक तरह से रौंद दी गयी परन्‍तु पाठको का भरपूर प्‍यार मिला। एक शादी समारोह में एक युवा पिता अपने बच्‍चे को मेरी तरफ अंगुली कर बता रहा था कि ये मोळियो के लेखक है। इससे ही मुझे मेरी किताब का अवार्ड मिल गया। ऐसे ही सैकडो बच्‍चो को मेरी किताब पसंद आयी। एक पिता ने बताया कि उसकी बेटी चाहती है कि मोळियो के लेखक उसकी स्‍कूल में आये। इस प्‍यार से मुझे और ज्‍यादा लिखने की उर्जा मिली। साल के अंत में मेरी डिजीटल ई बुक बी के स्‍कूल की कचौरी आयी। जिसे पूरे देश के पाठको ने भरपूर प्‍यार दिया। ऑन लाईन बिक्री मे लॉंचिग के पहिले दिन ही किताब ने धूम मचा दी थी। जयपुर के एक पाठक ने मुझे फोन कर बधाई दी। सात समंदर पार बसे बीकानेरियो को भी यह किताब बहुत पसंद आयी। कुछ एक ने मेरे ई मेल पर अपना आर्शीवाद भेजा। मेरा दिल आल्‍हादित था। इस किताब ने एक बार फिर मुझे लेखक के रूप में स्‍थापित किया। आकाशवाणी ने इस किताब के लिए मेरा विशेष इंटरव्‍यू प्रसारित किया। इस प्‍यार के बावजूद कुछ लोगो के लिए चाहता था कि मेरी किताब पढे पर उन्‍होने नहीं पढी। उम्‍मीद है नये साल में वो मेरी किताबो केा पढेंगे।


इस साल भी जनसत्‍ता में मेरा कालम प्रकाशन जारी रहा। हर महीने में मेरा एक लेख जनसत्‍ता में प्रकाशित हुआ। कुछ एक लेख और कहानी दूसरे समाचार पत्रो में भी प्रकाशित हुए।

इस साल के शुरू में प्रोग्रेसिव सोसायटी ने मेरे लेखन के लिए मुझे सम्‍मानित किया। वरिष्‍ठ साहित्‍यकार मधु आचार्य ने मुझे सम्‍मानित करते हुए सकारात्‍मकता के साथ नये स्रजन के लिए बधाई दी। श्री लाल मोहता स्म्रति ट्रस्‍ट ने भी इस साल के मध्‍य में मुझे लघु कथा वाचन के लिए आमंत्रित किया। गिरीराज जी भाई साहब और ब्रजरतनजी जोशी ने मुझे सम्‍मान देते हुए मंच पर आसीन किया। मेरी लघुकथाओ को सराहा गया और लेखन के लिए मेरा सम्‍मान भी किया गया। इस साल कई साहित्‍यक कार्यक्रमो में जाना हुआा यह साहित्‍य स्‍वजनो को प्‍यार ही था जिससे कई कार्यक्रमो में भागीदारी भी निभाई। 



यह साल घुमक्‍कडी का भी रहा । इस साल परिवार में साथ ऋषिकेश और देहरादून की घुमाई की। बच्‍चो के साथ दिन मे तीन तीन घंटे गंगा में पडे रहने का सुख जैसा कोई सुख नही। कभी बच्‍चो के साथ पहाडो पर पैदल ही निकल जाता तो कभी झरनो के नीचे घंटो नहाते हुए घुमक्‍कडी का आनंद लिया। इस बार दिल खोलकर फोटो खिंचवाई। इस टुर पर मेरे फोन का सारा स्‍टोरेज खत्‍म हो गया। हमने यात्रा का समापन गिरीराज जी की यात्रा से किया। मथुरा और व्रद्धवन के सुंदर मंदिरो में दर्शन किये।



 पूरे परिवार के साथ भजन गाते और नाचते हुए गिरीराज जी की पदयात्रा की। ऐसी घुमक्‍कडी का आंनद पहले कभी नहीं आया।


यह साल मेरे लिए उत्‍सवो का भी रहा। सारे उत्‍सव दिल खोलकर मनाये। इस बार गणेश उत्‍सव पहली बार मनाया। गणेश चतुर्थी को गणेश की प्रतिमा लाकर स्‍थापित की और अनंत चतुर्दशी के दिन गाजे बाजे के साथ विर्सजन किया। होली के दिन यार दोस्‍तो के साथ खूब रंग खेले। इस बार आफिस में जिला कलेक्‍टर के साथ मस्‍ती के साथ होली खेली। ढोल और चंग की थाप पर साथियो के साथ खूब कदम थिरकाये। इस साल होली से पहले बीकानेर में राष्‍ट्रीय महोत्‍सव हुआ जिसमें जम कर भागीदारी की। इंडियन आयडल विनर सलमान की गायकी का तो जमकर मजा लिया। बीकानेर ने दलेर मेंहदी के प्रोग्राम के बाद पहली बार किसी गायक के गानो पर झूमकर आनंद लिया। दीवाली पर तो रात भर पटाखे चलाये और यार दोस्‍तो के साथ खूब बाते की। दीवाली हमेशा की तरह उल्‍लासित रही।आखातीज को पतंगबाजी का भी खूब आनंद लिया। दिनभर छत्‍तर पर माईक पर बोल बोल अपनी बायड निकाली। पतंगो में भी तरह तरह की पतंगे उडाई और जोर से यह गाते रहे

चली चली रे पतंग मेरी चली रे

चली बादलो के पार होके डोर पे सवार चली रे।  


साल पूरा मस्‍ती भरा रहा और उत्‍सवो के उल्‍लास से सराबोर रहा परन्‍तु एक घटना दहला गयी। इस साल मेरे छोटे साले साहेब किसन कुमार पूरोहित अपने प्रेम तान मे बांधकर हम से बिछुड गया। किसनजी मेरे मित्रवत थे। इस साल के शुरू में तो उनसे मिला था। वो कितनी मुस्‍कुराकर बात कर रहे थे। अपनी बेटी के साथ मस्‍ती कर रहे थे लेकिन इस साल के बीच में ही खबर आयी तो मै स्‍तब्‍ध था।

साल जैसे धीमे पदचापो के साथ जा रहा है वैसे ही नये साल की पदचाप सुनाई देने लगी है। इस साल जिनको जीत नही पाये उनको नये साल में जीतेंगे। नये साल का सूरज क्षितिज पर अपना उजास फैला रहा है। आसमान में भोर की लालिमा छा रही है। झूमते हुए दोस्‍तो के चेहरे इस लालिमा के साथ दिख रहे है। इनमें वो दोस्‍त भी है जिनको जितना बाकि है। नये साल में और ज्‍यादा लिखूंगा और आपको पढाकर परेशान करता रहूंगा। आपका और ज्‍यादा प्‍यार पाने की कोशिश करूंगा। मन कह रहा है।

इस साल में सिमटी हुयी ये घडिया फिर से न बिखर जाये

इस रात में जी ले हम  इस रात मे मर जाये।

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Tuesday, October 24, 2023

ये क्रिकेट है मेरी जान

 

 

मै आज दैनिक भास्‍कर में वरिष्‍ठ पत्रकार शेखर का एक लेख पढ रहा था जिसमें उन्‍होने क्रिकेट के दर्शको के सैकलुर होने की बात उठायी है। उनका ईशारा भारत पाक मैच के दौरान पाकिस्‍तान बल्‍लेबाज रिजवान के आउट होने पर दर्शको द्वारा जय श्रीराम का नारा लगाने की ओर था। उसी तरह मैने टिवटर पर एक पोस्‍ट देखी जिसमें क्रिकेट की समीक्षा जाति के माधयम से करने के पक्ष मे तर्क दिये गये थे। एक फेसबुक रील में मैने एक क्लिप देखी जिसमें कुछ दर्शक बांग्‍लादेशी दर्शको से उनके प्रतीक शेर के खिलौने को छिनकर उसका मजाक बना रहे थे। अब चाहे वरिष्‍ठ हो या साधारण आप क्रिकेट में क्‍या देख रहे है। इतना शानदार क्रिकेट विश्‍वकप चल रहा है। उसमें आपको चौक्‍के छक्‍के नही दिख रहे है। आपको इसमें ये सब कैसे दिख रहा है। एक क्रिकेट प्रेमी को मैदान पर क्रिकेट के अलावा कुछ नही दिखाई देता है। जो यह सब देखते है वो निश्चित रूप से क्रिकेट प्रेमी नही है। भारत पाक मैच में दर्शको दवारा वन्‍देमातरम भी गाया गया था। आपको वो दिखना चाहिए परन्‍तु जब क्रिकेट मैच मे मसाला नही मिला था इस प्रकार की चीजे दिखाई देने लग गयी।


वरिष्‍ठ पत्रकार शेखर ने अपने लेख में पाकिस्‍तान के कोच का हवाला देते हुए लिखा है कि उनके कोच को हार का एक कारण भारतीय दर्शक लगे। उनका कहना था कि पाकिस्‍तानी दर्शको को वीजा नही देने से एक भी पाकिस्‍तानी दर्शक मैदान में नही था। वरिष्‍ठ पत्रकार शेखर ने इस बात की वकालत की है कि बीसीसीआई और भारत को उदार दिल दिखाते हुए पाकिस्‍तानी दर्शको का भी वीजा दिया जाना चाहिए था। भारत पाक मैच के दौरान जब पाकिस्‍तानी बल्‍लेबाज रिजवान आउट होकर पवेलियन लौट रहे थे तो दर्शको ने जय श्रीराम के नारे लगाये। कई लोगो ने इसे मान लिया कि यह नारा दर्शको ने पाकिस्‍तानी बल्‍लेबाज को चिढाने के लिए बोला था। पत्रकार शेखर ने अपने लेख में यह भी लिखा है कि पाकिस्‍तानियो ने १९९९ की तरह अल्‍लाह हू अकबर के नारे नही लगाये। उनका यह भी मानना हे कि दर्शको को भी अब निष्‍पक्ष होना चाहिए। वो यह भी कहते है कि भारत के स्‍टेडियमो में माईक से दिल दिल पाकिस्‍तान का नारा लगने का सोचना भी एक सपने जैसा होगा। शेखर की तरह ही एक आस्ट्रेलियाई लेखक ने भारत पाक मैच के दौरान स्‍टेडियम में एक लाख से जयादा दर्शको के नीली जर्सी देखकर लिखा जैसे स्‍टेडियम में नीली जर्सी की बाढ आ गयी हो। उन्‍होने कहा स्‍टेडियम में मानो मैच नही कोई रैली हो रही हो। उन्‍होने इसकी तुलना नाजियो से भी की। ऐसे लेखको और पत्रकारो ने एक स्‍टेडियम में भारत पाक मैच के अलावा सबकुछ देख लिया। इन्‍होने मैदान में सिर्फ क्रिकेट नहीं देखा और इ्रन्‍हे सब कुछ दिखाई दे गया।

यहां एक टिवटर पोस्‍ट का जिक्र करना भी लाजिमी होगा। ए‍क सबक्राईबर की टिवटर पोस्‍ट में इस बात का समर्थन किया गया कि क्रिकेट को जातिवादी नजरिये से भी देखा जाना चाहिए। उन्‍होने इसे क्रिकेट की सामाजिक व्‍यवस्‍था का नाम दिया। आज तक किसी क्रिकेटर और समीक्षक ने क्रिकेट में जाति व्‍यवस्‍था की बात नही उठायी। यहां तक किसी क्रिकेटर और तबके ने भी क्रिकेट में जाति की समीक्षा नही की। लोग क्रिकेट को कहां ले जा रहे है। क्रिकेट में जाति कहां से आ गयी। क्रिकेट सिर्फ क्रिकेट है। उसकी आप जाति के आधार पर समीक्षा कैसे कर सकते हो। उनका कहना है कि वो इस प्रकार से क्रिकेट के सामाजिक प्रभाव का अध्‍ययन कर रहे है। क्रिकेट एक खेल है और खेल को खेल की नजर से देखा जाना चाहिए। इसमें कोई और चीज नही देखी जानी चाहिए।

भारत में विश्व कप चल रहा है और शानदार तरीके से चल रहा है परन्‍तु मसाला नहीं निकल रहा है। इसलिए लेखक और पत्रकार क्रिकेट से इस प्रकार मसाला निकाल रहे है। भारत पाक मैच में दोनो देशो के खिलाडियो के बीच सौहाद्रपूर्ण संबध रहे। पूर्व के मैचो की तरह दोनो देशो के खिलाडियो के बीच कुछ नहीं हुआ। इससे पहले के विश्‍वकपो के मैचो में भारत और पाक खिलाडियो के बीच छेडखानी और कहानी होती रही है। इस बार ऐसा कुछ नही हुआ तो पत्रकारो ने दर्शको मे से मसाला ढुंढ निकाला। कोई भी दर्शक अवांछनीय काम करता हे या नारा लगाता है तो उसके लिए कानून बने हुए है। यदि आप इस प्रकार से दर्शको और क्रिकेट को देखोगे तो फिर क्रिकेट क्रिकेट नही रह जायेगा। यह क्रिकेट है। इसमे आप मैच कैसे खेला गया , य‍ह देखिये। यह देखिये कि किसने रन बनाये और किसने नही बनाये। नही बनाये तो क्‍यो नही बनाये। उनका पूराना इतिहास क्‍या है। क्रिकेट में आप क्रिकेट देखिये। क्रिकेट में राजनैनिक चीजे देखने की अनावश्‍यक कोशिश नही करनी चाहिए। यह क्रिकेट है मेरी जान। इसका मजा लिजिए। इसमे आनंद के पल ढुंढये नफरत के लिए दूसरी बहुत सी जगहे है।

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